सच्चे प्रेम के पक्ष में कविता
प्रेम प्रेम करते हैं सभी प्रेम योगी पर प्रेम परिपाटी को बढ़ाना नहीं जानते,
पहले स प्रेम अब रहा नहीं प्रेमियों में प्रेम कि वह शर्त निभाना नहीं जानते,
प्रेम को तो मानते हैं ईश्वर का रूप पर प्रेम कि वह कीमत चुकाना नहीं जानते,
झूठे प्रेम योगी काम वासना में लिप्त बली Prem Granth पैरवी चढ़ाना नहीं जानते ll
और प्रेम होना कैसा चाहिए
जैसे रम गए हनुमान राम भक्ति में ऐसे प्रेम भाव का तो रिश्ता कहां है अब,
श्याम के लिए था प्रेम सभी गोपियों का पर ऐसा प्रेम कहो कहीं कहां दिखता है अब,
जैसे रम गए हनुमान राम भक्ति में ऐसा प्रेम भाव कहो कहीं कहां दिखता है अब,
श्याम के लिए था प्रेम सभी गोपियों का पर ऐसा प्रेम कहो कहीं कहां दिखता है अब,
मीरा बावरी ने प्रेम की जो परिभाषा लिखी ऐसी परिभाषा कहो कहीं कहां दिखता है अब,
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