Saturday 28 July 2018

जब बसाने का मन में ना हो हौसला

जब बसाने का मन में ना हो हौसला बेवजह घोसला मत बनाया करो 

और उठा ना सको तुम गिरे फूल तो इस तरह डालियां मत हिलाया करो 
वह समंदर नहीं था थे आंसू मेरे जिनमें तुम तैरते और नहाते रहे 
एक हम थे जो आंखों की झील में बस किनारे पर डुबकी लगाते रहे
 मछलियां सब झुलस जाएंगी झील की अपना पूरा बदन मत डुबाया करो 
जब बसाने का मन में ना हो हौसला बेवजह घोसला मत बनाया करो 
और उठा ना सको तुम गिरे फूल तो इस तरह डालियां मत हिलाया करो 
वह हमें क्या संभालेंगे इस भीड़ में जिनसे अपना दुपट्टा संभलता नहीं 
कैसे मन को मैं कह दूं सुकोमल है यह फूल को देखकर जो मचलता नहीं 
और जिनके दीवार-ओ-दर है बने मोम के उनके घर में न दीपक जलाया करो 
जब बसाने का मन में ना हो हौसला बेवजह घोसला मत बनाया करो
इन पतंगों को देखो यह उड़ती यहां जब कटेगी तो जाने गिरेगी कहां
 बहती नदियों को खुद भी पता ही नहीं अपने प्रियतम से जाने मिलेगी कहां 
और जिनके होठों पर तुम ना हंसी रख सको उनकी आंखों में आंसू ना लाया करो 
जब बसाने का मन में ना हो हौसला बेवजह घोसला  मत बनाया करो और उठा ना सको तुम गिरे फूल तो 

कबीरदास जी ने कहा ढाई आखर प्रेम का पढ़े सो पंडित होय हमारे फिल्मी गीतकारों ने प्रेम को इलू इलू में समेट कर रख दिया लेकिन इंग्लिश लिटरेचर में कहा गया Love is not simply word it is containing everything.

प्रेम को ढाई अक्षर का कैसे कहें प्रेम सागर से गहरा है नभ से बड़ा
 प्रेम होता है दिखता नहीं है मगर प्रेम की ही धुरी पर यह जग है खड़ा 
और प्रेम के इस नगर में जो अनजान हो उसको रास्ते गलत मत बताया करो 
जब बसाने का मन में ना हो हौसला बेवजह घोसला मत बनाया करो 
और उठा ना सको तुम गिरे फूल तो बेवजह डालियां मत हिलाया करोl 
 सक्सेना जी
 संतोष कुमार आर्य
9450195881

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