Wednesday 21 March 2018

माता-पिता पर कविता

माता पिता की सेवा करना हमारा  परम कर्तव्य है उनकी सेवा हमें पूर्ण मन और निष्ठा से करनी चाहिए माता पिता के पक्ष में एक कविता प्रस्तुत है......

माता पिता  सेवा करो  ममता के  वृक्ष हैं ये,
छाव पाके  इनका  महान बन जाओगे,
छोड़ो चारों धाम इन्हें ईश्वर बनाओ बंधु,
श्रवण के जैसे इनके प्राण बन जाओगे,
धर करके शीश यदि पा लो आशीष इनका,
पापी शीश के लिए कृपाण बन जाओगे,
पिता के संस्कार ना तो रहे उपकार में तो,
ईसा मसीह,नानक सामान बन जाओगे ll

आपका-
S.K.Arya
Mo-9450195881

सच्चे प्रेम पर कविता

सच्चे प्रेम के पक्ष में कविता


 प्रेम प्रेम करते हैं सभी  प्रेम योगी पर प्रेम परिपाटी को बढ़ाना नहीं जानते,
पहले स प्रेम अब रहा नहीं प्रेमियों में प्रेम कि वह शर्त  निभाना नहीं जानते,
प्रेम को तो मानते हैं ईश्वर का रूप पर प्रेम कि वह कीमत चुकाना नहीं जानते,
झूठे प्रेम योगी काम वासना में लिप्त बली Prem Granth  पैरवी  चढ़ाना नहीं  जानते ll

और प्रेम होना कैसा चाहिए

जैसे रम गए हनुमान राम भक्ति में ऐसे प्रेम भाव का तो  रिश्ता कहां है अब,
श्याम के लिए था प्रेम सभी गोपियों का पर ऐसा प्रेम कहो कहीं कहां दिखता  है अब,
जैसे रम गए हनुमान राम भक्ति में ऐसा प्रेम भाव कहो कहीं कहां दिखता है अब,
श्याम के लिए था प्रेम सभी गोपियों का पर ऐसा प्रेम कहो कहीं कहां दिखता है अब,
मीरा बावरी ने प्रेम की जो परिभाषा लिखी ऐसी परिभाषा कहो कहीं कहां दिखता है अब,
औ शेखर भगत राजगुरु बिस्मिल  सम देश प्रेमी को है रवि कौन दिखता है अब ll

आपका संतोष कुमार आर्या
    (Your S.K.Arya)
    Mo-9450195881AryaHindiKavitasangam.com

धर्म के पक्ष में कविता

 धर्म के पक्ष में कविता

मंजिलें हैं एक सभी पथिको का सुनो बंधु कहता हूं जाने वाले रास्ते अनेक हैं,
मानवों को बांटते हैं जातिवाद,धर्मवाद मेरा मानना है यह तो मानवों का टेक हैll
ईश्वर के कई नाम  राम व रहीम,पर साई जी ने कहा था कि मालिक तो एक है,
जातिवाद,धर्मवाद,क्षेत्रवाद नेक नहीं कर्म  यदि नेक है तो तो सारा जग नेक है ll 

सरस्वती वंदना एवं मंत्र

 सरस्वती का शुभ श्वेत धवल रूप जो वेदों में वर्णित किया गया है-

या कुंदेंदु-तुषार हार धवला,
या शुभ्रवस्त्रावृता,
या वीणा वर दंड मंडित करा,
या श्वेतपद्मासना,
या ब्रह्माच्युत प्रवृत्ति  देवें सदा वंदिता,
सा मां पातु सरस्वति भगवति नि:शेष जाड्या पहा ll

 अर्थात
देवी सरस्वती शीतल चंद्रमा की किरणों से गिरती हुई ओस की बूंदों के श्वेत हार से सुसज्जित शुभ वस्त्रों से आवृत हाथों में वीणा धारण किए हुए वर मुद्रा में अति  स्वेत कमल रूपी आसन पर विराजमान है शारदा देवी,ब्रह्मा,शंकर   औचित्य आदि देवताओं द्वारा भी सदा ही वंदनीय है ऐसी देवी सरस्वती हमारी बुद्धि की जड़ता को नष्ट करके हमें तीक्ष्ण बुद्धि एवं कुशाग्र मेधा से युक्त करेंl

सरस्वती  मंत्र
ॐ ऐं ह्रीं क्ली` महासरस्वती देव्यै नमः ll

इस मंत्र के जाप से जन्म कुंडली के लग्न( प्रथम भाव ),पंचम( विद्या) और नवम (भाग्य) भाव के दोष भी समाप्त हो जाते हैंl

Tuesday 20 March 2018

भारतीय सैनिक पर कविता

एक जवान जो कि सीमा पर शहीद हो जाता है उसके घर में उसकी मां होती है और उसकी बहन है वह जवान मरते-मरते एक खत लिखता है अपनी मां के नाम हलाकि इस विषय को बहुत लोगों ने अपनी कविता का रुप दिया है लेकिन मैं पहली बार इस विषय को विषयांतर करते हुए एक कविता लिखता हूं पढ़िएगा........

सीमा पर एक जवान जो शहीद हो गया,संवेदनाओं के कितने बीज बो गया l
तिरंगे में लिपटी लाश उसके घर पर आ गई ,सिहर उठी हवाएं उदासी छा गयी l
तिरंगे में रखा खत जो उसकी मां को दिख गया ,मरता हुआ जवान जो उस खत पर लिख गया l
बलिदान को अब आसुओं से धोना नहीं है, तुझको कसम है मां मेरी की रोना नहीं है ll

 क्या याद आता है  उसे.........

मुझको याद आ रहा है तेरा उंगली पकड़ना कंधे पर बिठाना मुझे बाहों में जकड़ना l
पगडंडियों पर खेतों की मैं तेज भागता सुनने को कहानी तेरी रातों को जागता l
पर बिन सुने कहानी तेरा लाल सो गया सोचा था तूने और कुछ और हो गया l
मुझ सा कोई घर में तेरे खिलौना नहीं है तुझको कसम है मां मेरी की रोना नहीं हैll

उसकी मां उसके लिए सेहरा बना रही थी किंतु जब फिर से लौट आएगा तो मैं तेरी शादी करूंगी वह नहीं आता है उसकी खबर आती है तब देखिएगा पंक्तियां........

सोचा था तूने अपने लिए बहु लाएगी पोते को अपने हाथों से झूला झूल आएगीl
तुतलाती बोली पोते की सु न सकी मां आंचल में अपने कलियां तू चुन न सकी मां l
ना रंगोली सजी घर पर न घोड़े पर मैं चढ़ा पतंग पर सवार हो यमलोक चल पड़ा l
वहां मां तेरे आंचल का तो बिछौना नहीं है तुझको कसम है मां मेरी की रोना नहीं हैl

 हमेशा अपनी बहन से झगड़ता था आज वह अपनी बहन के लिए कहता है......

बहना से कहना राखी पर याद ना करें किस्मत को ना कोसे कोई फरियाद ना करें l
अब कौन है उसे चोटी पकड़कर चिढ़आएगा अब कौन भाई दूज का निवाला खाएगा l
कहना कि बनकर भाई अबकी बार आऊंगा सुहाग वाली चुनरी अबकी बार लाऊंगा l
अब भाई और बहन में मेल होना नहीं है तुझको कसम है मां मेरी की रोना नहीं हैl

इस गीत को क्यों लिखा मेरे इस हिंदुस्तान की पंगु प्रशासनिक राजनीतिक व्यवस्था सैनिक इतना कुछ करता है देश के लिए बदले में क्या मिलता है अगली पंक्तियां पढ़िएगा..........

तुझको कसम है मां मेरी की रोना नहीं है सरकार मेरे नाम से कई फ़ंड लाएगीl

सैनिक कल्याण प्रकोष्ठ बना हुआ है देश में.........

सरकार मेरे नाम से कई फ़ंड लाएगी चौराहों पर तुझको तमाशा बनाएगी l
अस्पतालों स्कूलों के नाम रखेगी अनमोल शहादत का कुछ दाम रखेगी l
दलालों की दलाली पर तू थूक देना मां बेटे की मौत की कोई कीमत न लेना मां l
भूखे भले मखमल पे हमको सोना नहीं है तुझको कसम है मां मेरी की रोना नहीं हैll
 सिद्धार्थ देवल
(Your S.K.ARYA)
 Mo-9450195881

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