Thursday 6 June 2019

मुझको तेरे शहर से मुक्तक

मुझको तेरे शहर से इतना लगाव क्यों है,
इन प्यार के  रिश्तो में इतना खिंचाव क्यों है,
मैं दूर रहना चाहूं पर दूर रह ना पाऊं,
दिल पर मेरे तुम्हारा इतना प्रभाव क्यों है....

Tuesday 4 June 2019

पर्यावरण संरक्षण पर कविता

रो-रोकर पुकार रहा हूं,
हमें जमीं से मत उखाड़ो।
रक्तस्राव से भीग गया हूं मैं,
कुल्हाड़ी अब मत मारो।
आसमां के बादल से पूछो,
मुझको कैसे पाला है।
हर मौसम में सींचा हमको,
मिट्टी-करकट झाड़ा है।
उन मंद हवाओं से पूछो,
जो झूला हमें झुलाया है।
पल-पल मेरा ख्याल रखा है,
अंकुर तभी उगाया है।
तुम सूखे इस उपवन में,
पेड़ों का एक बाग लगा लो।
रो-रोकर पुकार रहा हूं,
हमें जमीं से मत उखाड़ो।
इस धरा की सुंदर छाया,
हम पेड़ों से बनी हुई है।
मधुर-मधुर ये मंद हवाएं,
अमृत बन के चली हुई हैं।
हमीं से नाता है जीवों का,
जो धरा पर आएंगे।
हमीं से रिश्ता है जन-जन का,
जो इस धरा से जाएंगे।
शाखाएं आंधी-तूफानों में टूटीं,
ठूंठ आंख में अब मत डालो।
रो-रोकर पुकार रहा हूं,
हमें जमीं से मत उखाड़ो।
हमीं कराते सब प्राणी को,
अमृत का रसपान।
हमीं से बनती कितनी औषधि।
नई पनपती जान।
कितने फल-फूल हम देते,
फिर भी अनजान बने हो।
लिए कुल्हाड़ी ताक रहे हो,
उत्तर दो क्यों बेजान खड़े हो।
हमीं से सुंदर जीवन मिलता,
बुरी नजर मुझपे मत डालो।
रो-रोकर पुकार रहा हूं,
हमें जमीं से मत उखाड़ो।
अगर जमीं पर नहीं रहे हम,
जीना दूभर हो जाएगा।
त्राहि-त्राहि जन-जन में होगी,
हाहाकार भी मच जाएगा।
तब पछताओगे तुम बंदे,
हमने इन्हें बिगाड़ा है।
हमीं से घर-घर सब मिलता है,
जो खड़ा हुआ किवाड़ा है।
गली-गली में पेड़ लगाओ,
हर प्राणी में आस जगा दो।
रो-रोकर पुकार रहा हूं,
हमें जमीं से मत उखाड़ो।

भगवान कृष्ण के संदर्भ में कुछ छंद

भगवान कृष्ण के प्रकटीकरण के  संदर्भ में कुछ पंक्तियां


प्रगटे मधुसूदन है या मथुरा मथुरा एक पावन धाम भई,जब श्याम की  झांई परी तन पर जमुना जल की  द्वित श्याम भई,मुरलीधर की मुरली सुनकर सब बावरी सी ब्रजबाम भई,ओ नंद नंदन के पद वंदन सो ब्रज की रज पुण्य ललाम भाई,
और कहते हैं जब भगवान कृष्ण मुरली बजाया करते थे कुंजों में तो गोपियां और राधा जी जिस हाल में होती थी बावली सी चल देती थी उनकी मुरली की धुन पर एक छंद प्रस्तुत है.........

मुरलीधर की मुरली सुनी के वृषभानु लली घर से निकली,धारणी पर धरे पद पंकज तो मकरंद की गंध बयार चली,मुखचंद्र निहार निहार खिली कहूं चंपा कहूं कचनार कली,जब दृष्टि में राधिका रानी बसी सब सृष्टि लगी बदली बदली ll
 और मुझे ऐसा लगता है कि मीरा के प्रेम से बड़ा सृष्टि में कोई उदाहरण मुझे प्रेम का नहीं लगता है  तो कुछ छंद मैं मीरा और कृष्ण भगवान के प्रस्तुत  करता हूं........
श्याम के नाम को थाम के प्रीत के धाम में नाम कमाई गई मीरा,जीवन के एक तार के तार में एक ही नाम रमाई गई मीरा, जोगी जपी और तपी सबके कर प्रीत की रीत थमा गई मीरा,प्राण समाए जो श्याम उन्ही में शरीर समेत समा गई मीरा,औ धूल भरी गलियों में फिरी सुख-वैभव बीच पली हुई मीरा,साज समाज के रोके रुकी नहीं प्रीत के पंत चली हुई मीरा,औ राग विराग के बीच रही अनुराग के सांचे ढली हुई मीरा,मोहन मोहन गाती हुई मन मोहन की मुरली हुई मीरा,औ जोड़ लिया मनमोहन से मन मीरा हुई मधुरा मुरली सी,झांझ मंजीरा बजावत गावत नाचे प्रेम पगी पगली सी,श्याम के रंग रंगी सी लगे  कहूं प्रेम के ढंग में Dole डली सीऔ देह खिली कचनार कली सी तो बोली भाई मिश्री की डली सी ll
औ अंतिम पंक्तियों के माध्यम से मैं राधा और मीरा दोनों के प्रति अपने प्रणाम निवेदन करती हूं उनके प्रेम के प्रति प्रस्तुत है......
राधा ने रास रचाया तो मीरा ने मोहन का गुणगान ही गाया,राधा ने मान श्याम से मान किया था तो मीरा ने मान गुमान भुलाया,राधा और श्याम तो एक ही तत्व थे माया ने सारा यह खेल खिलाया,औ मीरा सजीव मिली घनश्याम से तेज में तेज का बिंदु समाया ll
Amiably-S.K.Arya Mo-9450195881

विश्व पर्यावरण दिवस पर कविता

विश्व पर्यावरण दिवस पर कविता

करके ऐसा काम दिखा दो, जिस पर गर्व दिखाई दे।
इतनी खुशियाँ बाँटो सबको, हर दिन पर्व दिखाई दे।
हरे वृक्ष जो काट रहे हैं, उन्हें खूब धिक्कारो,
खुद भी पेड़ लगाओ इतने, धरती स्वर्ग दिखाई दे।।
करके ऐसा काम दिखा दो…
कोई मानव शिक्षा से भी, वंचित नहीं दिखाई दे।
सरिताओं में कूड़ा-करकट, संचित नहीं दिखाई दे।
वृक्ष रोपकर पर्यावरण का, संरक्षण ऐसा करना,
दुष्ट प्रदूषण का भय भू पर, किंचित नहीं दिखाई दे।।
करके ऐसा काम दिखा दो…
हरे वृक्ष से वायु-प्रदूषण का, संहार दिखाई दे।
हरियाली और प्राणवायु का, बस अम्बार दिखाई दे।
जंगल के जीवों के रक्षक, बनकर तो दिखला दो,
जिससे सुखमय प्यारा-प्यारा, ये संसार दिखाई दे।।
करके ऐसा काम दिखा दो…
वसुन्धरा पर स्वास्थ्य-शक्ति का, बस आधार दिखाई दे।
जड़ी-बूटियों औषधियों की, बस भरमार दिखाई दे।
जागो बच्चो, जागो मानव, यत्न करो कोई ऐसा,
कोई प्राणी इस धरती पर, ना बीमार दिखाई दे।।
करके ऐसा काम दिखा दो…

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माँ मेरी माँ प्यारी माँ मम्मा ओ माँ मेरी माँ प्यारी माँ मम्मा हाथों की लकीरें बदल जायेंगी ग़म की येः जंजीरें पिघल जायेंगी हो खुदा प...