हिरण्यगर्भ: समवर्तताग्रे भूतस्य जात: पतिरेकासीत्।
स दाधारं पृथ्वीं ध्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम्।।
(प्रथम श्लोक, हिरण्यगर्भ सूक्तम, ऋगवेद, दशम मण्डल, सूक्त -121)
वो था हिरण्यगर्भ, सृष्टि से पहले विद्यमान
वहीं तो सारे भूत जात का स्वामी महान
जो हैं अस्तित्वमान, धरती- आसमान धारण कर
ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर।
जिसके बल पर तेजोमय है अम्बर
पृथ्वी हरी-भरी, स्थापित, स्थिर
स्वर्ग और सूरज भी स्थिर।
ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर।
गर्भ में अपने अग्रि धारण कर, पैदा कर,
व्यापा था जल इधर-उधर, नीचे ऊपर
जगा जोे देवों का एकमेव प्राण बनकर,
ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर।
ऊं!!
सृष्टि निर्माता, स्वर्ग रचयिता, पूर्वज रक्षा कर
सत्य धर्म पालक, अतुल जल नियामक रक्षा कर।
फैली है दिशाएं बाहु जैसी उसकी सब में, सब पर
ऐसे ही देवता की उपासना करें हम हवि देकर।
ऐसे ही देवता की उपासना करें हम हवि देकर..।
स दाधारं पृथ्वीं ध्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम्।।
(प्रथम श्लोक, हिरण्यगर्भ सूक्तम, ऋगवेद, दशम मण्डल, सूक्त -121)
वो था हिरण्यगर्भ, सृष्टि से पहले विद्यमान
वहीं तो सारे भूत जात का स्वामी महान
जो हैं अस्तित्वमान, धरती- आसमान धारण कर
ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर।
जिसके बल पर तेजोमय है अम्बर
पृथ्वी हरी-भरी, स्थापित, स्थिर
स्वर्ग और सूरज भी स्थिर।
ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर।
गर्भ में अपने अग्रि धारण कर, पैदा कर,
व्यापा था जल इधर-उधर, नीचे ऊपर
जगा जोे देवों का एकमेव प्राण बनकर,
ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर।
ऊं!!
सृष्टि निर्माता, स्वर्ग रचयिता, पूर्वज रक्षा कर
सत्य धर्म पालक, अतुल जल नियामक रक्षा कर।
फैली है दिशाएं बाहु जैसी उसकी सब में, सब पर
ऐसे ही देवता की उपासना करें हम हवि देकर।
ऐसे ही देवता की उपासना करें हम हवि देकर..।