Thursday 30 May 2019

हिरण्यगर्भ सृष्टि से पहले विद्यमान ऋग्वेद सूक्ति 121

हिरण्यगर्भ: समवर्तताग्रे भूतस्य जात: पतिरेकासीत्।
स दाधारं पृथ्वीं ध्यामुतेमां कस्मै देवाय हविषा विधेम्।।
(प्रथम श्लोक, हिरण्यगर्भ सूक्तम, ऋगवेद, दशम मण्डल, सूक्त -121)

वो था हिरण्यगर्भ, सृष्टि से पहले विद्यमान
वहीं तो सारे भूत जात का स्वामी महान

जो हैं अस्तित्वमान, धरती- आसमान धारण कर
ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर।

जिसके बल पर तेजोमय है अम्बर
पृथ्वी हरी-भरी, स्थापित, स्थिर
स्वर्ग और सूरज भी स्थिर।
ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर।

गर्भ में अपने अग्रि धारण कर, पैदा कर,
व्यापा था जल इधर-उधर, नीचे ऊपर
जगा जोे देवों का एकमेव प्राण बनकर,
ऐसे किस देवता की उपासना करें हम हवि देकर।

ऊं!!

सृष्टि निर्माता, स्वर्ग रचयिता, पूर्वज रक्षा कर
सत्य धर्म पालक, अतुल जल नियामक रक्षा कर।
फैली है दिशाएं बाहु जैसी उसकी सब में, सब पर
ऐसे ही देवता की उपासना करें हम हवि देकर।
ऐसे ही देवता की उपासना करें हम हवि देकर..।

सृष्टि से पहले सत नहीं था,असत भी नहीं

नासदासीनन्नोसदासीत्तानीम नासीद्रोजो नो व्योमा परो यत।
किमावरीव: कुहकस्यशर्मन्नम्भ: किमासीद्गगहनं गभीरम्।।
(नासदीय सूक्त, ऋगवेद, दशम् मंडल, सूक्त- 129)

सृष्टि से पहले सत् नहीं था,
असत् भी नहीं
अंतरिक्ष भी नहीं,
आकाश भी नहीं था।

छिपा था क्या, कहां,
किसने ढका था।
उस पल तो अगम, अतल
जल भी कहां था।

नहीं थी मृत्यु,
थी अमरता भी नहीं।
नहीं था दिन, रात भी नहीं
हवा भी नहीं।
सांस थी स्वयमेव फिर भी,
नहीं था कोई, कुछ भी।
परमतत्व से अलग, या परे भी।

अंधेरे में अंधेरा, मुंदा अंधेरा था,
जल भी केवल निराकार जल था।
परमतत्व था, सृजन कामना से भरा
ओछे जल से घिरा।
वही अपनी तपस्या की महिमा से उभरा।

परम मन में बीज पहला जो उगा,
काम बनकर वह जगा।
कवियों, ज्ञानियों ने जाना
असत् और सत् का, निकट सम्बन्ध पहचाना।

पहले सम्बन्ध के किरण धागे तिरछे।
परमतत्व उस पल ऊपर या नीचे।
वह था बटा हुआ,
पुरुष और स्त्री बना हुआ।

ऊपर दाता वही भोक्ता
नीचे वसुधा स्वधा
हो गया।।

सृष्टि ये बनी कैसे,
किससे
आई है कहां से।
कोई क्या जानता है,
बता सकता है?

देवताओं को नहीं ज्ञात
वे आए सृजन के बाद।

सृष्टि को रचा है जिसने,
उसको, जाना किसने।


सृष्टि का कौन है कर्ता,
कर्ता है व अकर्ता?
ऊंचे आकाश में रहता,
सदा अध्यक्ष बना रहता।
वहीं सचमुच में जानता
या नहीं भी जानता।
है किसी को नहीं पता,
नहीं पता,
नहीं हैं पता,
नहीं हैं पता।

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